Tuesday 28 May 2013

जिंदगी आस पास ही तो है ।

तुम बैठे  हो तनहा ,
देखो जिंदगी कहीं आस पास होगी ।
पहाड़ से गिरते झरनों में ,
नदी में अठखेलियाँ करती होगी। 
जंगल से जो आती है जो महक ,
फूलों से लदी उन घाटियों में होगी ।
आजादी का परचम लहराते हुए ,
आसमान में उड़ते पंछियों में होगी ।
शाम ढलते ही उग आया है चाँद ,
उस चांदनी रात में होगी ।
सावन में पड़े हैं झूले ,
उस बरसती बारिश में होगी ।
पहली बूँद से जो गीली हुई ,
उस मिटटी की खुशबु में होगी ।
रुई के नरम स्पर्श जैसे ,
नन्हे कोमल हाथों में होगी ।
क्यों बैठे हो तनहा ,
देखो जिंदगी आस पास ही तो है ।




Monday 27 May 2013

तान हाथ में तलवार

युग बदले सदियाँ बदली ,
न बदला तेरा रूप हर बार ,
सीता बन तुम कष्ट में  रही ,
अग्नि परीक्षा को हो गयी तैयार । 
नारी तुम कोमल करुण सी ,
मातृत्व तुम्हारा आधार, 
माली बन बगिया सींचती  हो ,
न चुका पांएगे तुम्हारा आभार । 
कमजोर विवश अबला समझ ,
तेरी मर्यादा को किया तार तार 
मौन दृष्टि से तमाशबीन बन ,
देखता रहा सारा  संसार । 
कोई न छू  सके तेरे दामन को, 
निर्मल आँचल न हो दागदार ,
हृदय  में अग्नि ज्वाला लिए ,
उस हाथ पर  कर ऐसा वार । 
जाग तू  न मूँद अपनी आँखें,
 न हो जीने को लाचार,
चूड़ियाँ  तोड़ अपने भीतर पौरष  जगा ,
तान ले हाथ में तलवार । 
कितने कंस कितने रावण, 
तेरे चारों और खड़े मचाते हाहाकार ,
दुर्गा बन तो काली है तू ले भवानी का रूप ,
इन दैत्यों का कर संहार । 

मैं देख रही थी...

                                              मैं देख रही थी   गहरी घाटियां सुन्दर झरने   फल फूल ताला...