Friday 21 June 2013

लोग लिखते हैं .....







लोग लिखते हैं कलम उठाते हैं 
रंजोगम की एक दुनिया बनाते हैं 
खुद रौशनी की शम्मा जला 
उसके तले पिघलते जाते हैं
रूह को सकूं मिल जाये शायद 
बस इतनी सी बात होती हैं 
जितना दर्द बढ़ता जाता है 
उतनी ही जवां रात होती है 
कुछ शायराना तबियत है
कहीं शायराना अंदाज है 
सुर भी बहके बहके हैं
बहका हुआ हर साज है 
गम में डूबे वो लव्ज 
कुछ अफ़साने बयाँ कर जाते हैं 
आगे चलते चलते 
खुद को कहीं पीछे छोड़ आते हैं  
बेबाकी कि हदें तोड़ कर  
कुछ ऐसे भी शौक पालते हैं 
पन्नों पर लिखते लिखते 
खुद को उधेड़ डालते हैं 

12 comments:

  1. एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता......काबिलेतारीफ बेहतरीन

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  2. जितना दर्द बढ़ता जाता है
    उतनी ही जवां रात होती है
    कुछ शायराना तबियत है
    कहीं शायराना अंदाज है|

    Kya baat!! Kya Baat !! Kya Baat.

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  3. जितना दर्द बढ़ता जाता है
    उतनी ही जवां रात होती है
    कुछ शायराना तबियत है
    कहीं शायराना अंदाज है|
    बेहद खूबसूरत!

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  4. लेखन अक्सर मन के भावों को ही तो दर्शाता है
    सुन्दर
    साभार !

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  5. आगे चलते चलते
    खुद को कहीं पीछे छोड़ आते हैं

    ...वाह! बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  6. मनन योग्य गंभीर रचना ..
    मंगल कामनाएं इस कलम को !

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  7. दर्द ऐसा ही होता है ... खुद को लिखने लगो तो खुद ही उधेड़े जाते हैं ...
    एहसास लिए उन्दा रचना ...

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  8. खुद रौशनी की शम्मा जला
    उसके तले पिघलते जाते हैं

    भावपूर्ण रचना ,

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  9. निसंदेह साधुवाद योग्य रचना....

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  10. कल 17/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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